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दिल्ली किसी की बपौती नहीं

 देख गांधी तेरे देश में ये क्या हो रहा। सत्ता में बैठा हिटलर क्यों सो रहा। अपराधी बेखौफ सरेआम घूम रहा । मासूम बच्चियों की आबरू लूट रहा। अरे बहरी सरकार, दिल्ली हमारा है ! हम जनता हैं, लगता है तू भूल गया। चौदह से पहले का हाल याद करो। समझ ले दिल्ली किसी की बपौती नही।

सब लूटेरे थे

 हम कब गरीब थे जो अब अमीर कहलाने लगे। सब लूटेरे ही थे, फिर कौन किसकी तकदीर बनाने लगे ? सब भूलभूलैया है इस जहाँ में कोई बचा ही नहीं कोरे कागज पर वे फिर से शायद लकीर बनाने लगे। हम बोलेंगे, चाहे तुम हमेंं मौत दो यारों ! लोकशाही के लिए हम चाहे  फकीर कहलाने गले। तुम फूँक दो राजघाट को भी सत्ता के नशे में। इस भूल में मत रहो कि तुम इतिहास में पीर कहलाने लगे। बहुत आये और चले गये, क्या हुआ हिन्दुस्ताँ का ? सच में 'साँच' आज सब भगोड़े मीर कहलाने लगे।
हंडी मे दालि नहि छौ, तू कामती। बिहनसरे सँ कटवा-कटौज होएत छौ। तू कह, की इ नीक छियैए जमानती। बड़ि भूकैत छैं तू, एहने दिन नहि रहतौ। सभहक मृत्यु निश्चित छै बाबर्ची।
यह मधुर पल है । मन बहुत चंचल है। हवाएँ थम गयी हैं। नदी आज जम गयी है। जमीं सज गयी है। घटा छा गयी है । झिंगुर गा रहा है। बिल्ली रो रही है। उधो ! देख मेरे साजन को ! वे आ रहे हैं शायद। लॉकडाउन खत्म हो रहा है। पावस अपना रूप दिखा रहा है।
जन्मदिन हवाएँ बदल रही हैं । फ़िज़ायें बदल रही हैं। मुल्क की आशाएँ बदल रही हैं। सुन ले, ओ दिल्ली ! मुल्क की अर्थ-व्यवस्थाएँ डूब रही हैं। बेरोजगारी बढ़ रही हैं। बेच दो, सब सरकारी उपक्रमों को। मौज करो, समाज को बाँटकर। गरीब-अमीर के बीच खाइयाँ बढ़ रही हैं। उठाओ मशाल वीरों ! क्रांति का समय आन पड़ा अब। उखाड़ फेंको इन्हें, मुल्क में नफरतें फैला रही हैं। आने वाला वक्त सवाल पूछेगा हमसे- इस मरे हुए देश में तुम कहाँ थे? जहाँ कुंभकरण की पीढ़ियाँ अभी भी  पल रही हैं। दिल पर पत्थर रख लिये हैं हम। केक नहीं काटेंगे इस बार हम। 'साँच' दुनिया  तेरी जन्मदिन नहीं मना रही हैं।
सनम इस कँपकँपी में  तुम मत नहाना। चाहे तुम्हें खुदा कहे या कहे भगवाना । धूप निकलने दो,तुम नव दुल्हन थोड़े हो? जीवन रहेगा तभी बजेगी शहनाई और गाना। सूरज लाने गया है दूर देश से सिन्दूर। घबड़ाओ नहीं,क्या कर लेगी पुलिस और थाना। तोड़ो बंधन सब,सत्ता के  रसूखों का। अंतर्नाद आज होगा, नहीं चलेगा उनका मनमाना। नहीं चाहिए सद्गति, नहीं चाहिए वीरगति। 'मुहब्बत' सँवर जाए इससे बड़ा क्या है खजाना ? कॉलेज-नॉलेज सब खाक हो जायेंगे । नफ़रत की आग में जल जायेंगे सब मकाना। इस भीड़तंत्र से  निकल,चलो कैलाश चलते हैं। मधुमास में हम गायेंगे मुहब्बत का तराना।
इश्क में सब कुछ अच्छे नहीं होते। यह दर्द के साथ मीठे एहसास भी हैं देते। पैगाम भेजा है दिलवर ने आज मुझे । पर मुलाकात नहीं होने से हम दोनों हैं रोते । बेरोजगारी का आलम ऐसा है, मेरे दोस्त ! उनके लिए हम लिपिस्टिक तक नहीं खरीद पाते । पढ़-लिखकर बड़े हुए, कम्प्युटर भी हम हैं जानते । पर क्या करें छुप-छुपके हम दारू हैं बेचते । मुश्किल है अब जीना सनम इस दुनिया में । हम मोदी को आत्महत्या का खत हैं भेजते । बाढ़ ने हमें खूब डूबोया है आज तलक। सब सरकारों के पुतले हैं हम फूँकते । हम गरीब हैं, हम दलित हैं हमें मंज़ूर है । हमारे घर में घुसने वाले तुम कौन हो होते ? हम मुसलमाँ हैं या हिन्दू  तुम से मतलब ? कौन हो तुम जो मेरी जाति हो पूछते ? हमारे पास ज़मीं हैं ,हमारे पास हुनर है । पर सुविधाविहीन हम किसानी हैं करते ? खूब उड़ाओ सरकारी खजाने मुफ्त में । ठंड में छतविहीन जनता का हाल कब हो तुम पूछते ? दारू अब होमडिलेवरी हो गया है सनम। बेरोजगारी के ग़म में चलो हम हैं पीते।
फ़ुर्सत कहाँ है, ए जानेमन इस जहाँ में ! प्याज का दाम गिन रहा हूँ इस लम्हे में। दहेज  नहीं, एक  रोजगार  दिला दे  मुझे । इश्क हमने किया है, क्या रखा है हंगामे में। छोड़ो ये कॉलेज-नॉलेज, नहीं  बिकता  यहाँ। सुना है  मोदी  आयेगा,  ठूस  देगा  थाने में।  तुम्हारा बलात्कार हो जाय, रपट न लिखे कोई। हमें न्याय न मिले यहाँ, कानून बिकता है आने में। हम शादी नहीं करेंगे, बच्चे नहीं जनेंगे मेरी जान ! कैसे  पढ़ायेंगे  उन्हें, क्या  देंगे  उन्हें   खाने में ? यह मुल्क अब बिक चुका है पूँजीपतियों के हाथों। सब फेल है,सच कहूँ- खोट है अब हर पैमाने में। प्यार-व्यार सब बेकार  है यहाँ, समझ ले तू 'साँच'। रोटी के लिए कुछ कर ले, क्या रखा है  कान्हे में।
सच को झूठ, झूठ को सच तुमने आज बनाया है । गांधी के देश में फिर तुमने हिंसा को अपनाया है। मत भूल कि सत्ता आती है और जाती है। मदमस्त होकर आज तुमने सच्चाई को दफ़नाया है। तू समझता है कि राम सिर्फ मेरे हैंं, सिर्फ मेरे हैंं।  क्या सोच कर तुमने निर्दोषों पर गोली बरसाया है ? हम ज़मींदोज़ हो जायेंगे हमें मंज़ूर है ये, दोस्त ! लेकिन याद रखना भारत को हमने भी बनाया है। जिस जनता ने तुझे गद्दी पर बैठाया, प्यार दिया । उसकी नागरिकता पूछकर तुमने उन्हें भरमाया है । मत समझ कि मैं अजेय हूँ, कौन बिगाड़ लेगा मेरा। इतिहास गवाह है-सिकंदर भी यहीं मात खाया है । निर्बुद्धि ! यह लोकतंत्र है तुझे नहीं पता  है 'साँच' ? अपने ही 'चक्रव्यूह' में  तू आज सच में फँस गया है।