फ़ुर्सत कहाँ है, ए जानेमन इस जहाँ में ! प्याज का दाम गिन रहा हूँ इस लम्हे में। दहेज नहीं, एक रोजगार दिला दे मुझे । इश्क हमने किया है, क्या रखा है हंगामे में। छोड़ो ये कॉलेज-नॉलेज, नहीं बिकता यहाँ। सुना है मोदी आयेगा, ठूस देगा थाने में। तुम्हारा बलात्कार हो जाय, रपट न लिखे कोई। हमें न्याय न मिले यहाँ, कानून बिकता है आने में। हम शादी नहीं करेंगे, बच्चे नहीं जनेंगे मेरी जान ! कैसे पढ़ायेंगे उन्हें, क्या देंगे उन्हें खाने में ? यह मुल्क अब बिक चुका है पूँजीपतियों के हाथों। सब फेल है,सच कहूँ- खोट है अब हर पैमाने में। प्यार-व्यार सब बेकार है यहाँ, समझ ले तू 'साँच'। रोटी के लिए कुछ कर ले, क्या रखा है कान्हे में।